त्रिवेणी - स्याह समय में
कलम आजकल बंद पड़ी है, कागज़ कोरे कोरे हैं | स्याह समय में, आशा के उजले कण थोड़े थोड़े हैं | स्याही आजकल कागज नहीं, चेहरे काले करती है ||
प्रेम अकेला कर देता है/ मन में पीड़ा भर देता है/ कुछ खोने का डर देता है/ ख़ामोशी को स्वर देता है/ नयनों में जल भर देता है/ दुनिया बदल कर धर देता है/ प्रेम अकेला कर देता है//