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त्रिवेणी - स्याह समय में

कलम आजकल बंद पड़ी है, कागज़ कोरे कोरे हैं  | स्याह समय में, आशा के उजले  कण थोड़े थोड़े हैं | स्याही आजकल कागज नहीं, चेहरे काले करती है ||