सर पे माँ की दुआओं का छाता रहा
जिंदगी उलझती रही, मैं उसे सुलझाता रहा | खुदा ने इश्क की दौलत थी बख्शी, लुटाता रहा || रोटी, कपडा, सर पे छत, नाकाफी थे इंसान को | होश सँभालने से मरने तक वो बस, दौलत जुटाता रहा || खुशी के मोती छोड़, दौलत के कंकड़ चुनता रहा इंसान | खुदा ऊपर से ये नादानी देख मुस्कुराता रहा || सफर में रहे हमसफ़र बन के सुख ओर दुःख | एक आता रहा, एक जाता रहा || बददुआओं की तेजाबी बारिशें, कई बार बरसी | शुक्र है, सर पे माँ की दुआओं का छाता रहा ||