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प्रेम अकेला कर देता है: ईमान मर नहीं सकता

प्रेम अकेला कर देता है: ईमान मर नहीं सकता

ये समय अब ना रहा मीर-ओ-ग़ालिब का

सीने में कितना दर्द है, कैसी ये आह है कितनी नाउम्मीदी, कितनी बेबस चाह है? तेरे साथ चल रहा प' तेरी आरजू नही कि जिसकी आरजू वो किसी और राह है मेरी छोटी खताओं को भी मिली है बड़ी सजा तेरे खून सौ भी माफ़ है, तू कहाँ का शाह है? ये समय अब ना रहा मीर-ओ-ग़ालिब का बाजारू शेरों  पे यहाँ अब मिलती वाह है. 'हे राम' कहा सच का जब छलनी हुआ सीना उसकी पुकार से भी करुण ये किसकी कराह है?

ऐसी ही कोई आस हूँ.

ना खुश हूँ, ना उदास हूँ! ना दूर हूँ, ना पास हूँ!!   मिट पाए ना मिटाने से! ऐसी अबूझ प्यास हूँ!!     हर पाँव जिसको रौंदता!   बेबस-सी  मैं वो घास हूँ!!     सारी उदासी धुल उठे! ऐसा मुकम्मल हास हूँ!!     बुझ-बुझ के भभक जो उठे! ऐसी ही कोई आस हूँ!!

तेरी रूह के निशान निकलते हैं

झगड़ों में जब भी आगे आन-और-बान निकलते हैं! जंगल के घर-घर से तब तीर-कमान निकलते हैं!! खूबसूरत मुखौटे के पीछे! बदसूरत इंसान निकलते हैं!! तन का मुखौटा हटा के देखो! क्या भगवान निकलते है? दुनिया की आग में जलनेवाले! कुंदन के समान निकलते है!! बाबाओं के पास जाकर लोग ! और भी परेशान निकलते हैं!! जंगल में बस्ती मिलती है! शहर वीरान निकलते हैं!! मेरे  जिस्म के कतरे-कतरे से! तेरी रूह के निशान निकलते हैं!! तुम जब भी गुमी हो, तलाश में तेरी! मेरे जिस्म-और-जान निकलते हैं!!

प्रेम अकेला कर देता है: प्रेम अकेला कर देता है

प्रेम अकेला कर देता है: प्रेम अकेला कर देता है

मेरी परिन्दगी ख्वाब देखती है

मेरी परिन्दगी ख्वाब देखती है नीले आसमानों के! वहीँ तेरी दरिंदगी ख्वाब देखती है खूं में नहाने के!! क़त्ल करना है तो कर छोड़ना तो छोड़ कर तू जा! धमकियों के नही हैं, ना रहे दिन आजमाने के!! ये डींगे लम्बी-लम्बी हांककर बहलाओ ना हमको! नही अपने हुए तुम क्या हुए फिर तुम ज़माने के!! की दौलत हाथ तो आई मगर रिश्ते भुला बैठे! चलो फिर से चले हम खोज में खोये खजाने के!! नयी बीबी के पास आया है सरहद से कोई फौजी! बहाने ढूंढ़ता रहा छुट्टी भर वापस ना जाने के!! मजा तो इश्क में आता है बदले अंदाज़-ऐ-मोहब्बत से! चलो ढूंढे बहाने फिर नए इक-दूजे को सताने के!! भला करने गए लोगों की अब है खैरियत मुश्किल! नही ये वक़्त अब है ना रहे राहों से पत्थर हटाने के!! जो उम्र होती है खेलने-कूदने-हंसने-गाने की! उस उम्र में भूख सिखा देती है गुर कमाने के!!

प्रेम अकेला कर देता है: बलात्कार के विरुद्ध

प्रेम अकेला कर देता है: बलात्कार के विरुद्ध

प्रेम अकेला कर देता है: निराला की याद में

प्रेम अकेला कर देता है: निराला की याद में

निराला की याद में

बसंत पंचमी माँ शारदे की पूजा का पवन त्यौहार होने के साथ हिंदी के महानतम  कवियों में एक महाप्राण महाकवि निराला का जन्मदिन भी है. महाप्राण निराला को याद करते हुए आज के दिन मैंने जो कविता लिखी है उसे आप सबों की सेवा में पेश कर रहा हूँ. बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की शुभ्र शुभकामनाएँ. महाप्राण कितना सोच समझ कर चुना था अपने लिए निराला उपमान कविता ही नही जिन्दगी भी निराली जियी अपरा, अनामिका से कुकुरमुत्ते और नए पत्ते तक की काव्य यात्रा में ना जाने कितने साहित्य-शिखरों को लांघ हे आधुनिक युग के तुलसीदास जीवन भर करते रहे तुम राम की तरह शक्ति की आराधना अत्याचारों के रावण के नाश के लिए राम को तो शक्ति का वरदान मिला तुम कहो महाकवि तुमको क्या मिला? जीवन के अंतिम विक्षिप्त पलों में करते रह गए गिला की मैं ही वसंत का अग्रदूत जीवन की त्रासदियों से जूझते कहते रहे तुम- "स्नेह निर्झर बह गया है रेत ज्यों तन रह गया है." हे महाकवि, हर युग ने अपने सबसे प्रबुद्ध लोगों को सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया है सबसे ज्यादा दुःख दिए हैं उन्हें तुम्ह

फिर भी लोग ख्वाब-ख्वाब करते हैं.

दोस्तों, ब्लोगों की  दुनिया से दूर ऑरकुट में भी कुछ communities  में  काफी रचनात्मक संभावनाएं दिखती है. ऑरकुट में ऐसी है एक प्यारी कम्युनिटी है महकार-ऐ-शफक . इस कम्युनिटी ने इधर पिछले एक महीने में मुझे लिखने के लिए काफी प्रेरणा दी है और मैं शुक्रगुजार हूँ इस समुदाय का. तो लीजिए  पेश है ख्वाबों पर चली इस समुदाय की बतकही की प्रेरणा से लिखी मेरी ताजा-तरीन ग़ज़ल-                     "फिर भी लोग ख्वाब-ख्वाब करते हैं. " इंसान ख़ुदकुशी कहाँ करते हैं वो तो ख्वाबों की मौत मरते हैं. इस पेड़ के नीचे ना खड़े हो दोस्त मेरे इससे पीले उदास पत्ते झड़ते हैं. अपने गम में होते हैं बहोत तन्हा हर गम औरों का जो हरते हैं ख्वाबों की लाशों से अटी-पटी ये दुनिया फिर भी लोग ख्वाब-ख्वाब करते हैं. अपनी ऊँगली की पोरों से यूँ छुओ ना हमको ऐसे छूने से हम सिहरते हैं. ख्वाबों की मौत का पता नही चलता ख्वाब इतनी ख़ामोशी से मरते हैं.

प्रेम अकेला कर देता है: पानी-पानी रे...

प्रेम अकेला कर देता है: पानी-पानी रे...

पानी-पानी रे...

चित्र
                                                                          'पानी-पानी रे...'-पानी बाबा राजेंद्र सिंह त्रिशूर, केरल में                                                          (07Dicember2009) दिसम्बर  के महीने में केरल के त्रिशूर जिले में UNICEF  और जिला प्रशासन  की साझेदारी में सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य के एक पहलू जल और स्वच्छता को लेकर परिचर्चा का आयोजन किया गया था जिसमे मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे हमारे अपने पानी बाबा- मैग्सेसे  अवार्ड से सम्मानित राजेंद्र सिंह जी. भव्य प्रशांत मुखमंडल वाले इस महान कर्म योगी की गहरी पनियाई आँखें बता रही थी इस शख्श के समंदर जैसे व्यक्तित्व की गहराई को.  सभा में और भी बहुत सारे विद्वतापूर्ण भाषण हुए पर मेरा मानों सारा ध्यान पानी बाबा पर ही केन्द्रित था और मैं उनके भाषण को सुनने की उत्सुक प्रतीक्षा कर रहा था. और जब वो घड़ी आई तो हिंदी में अपनी बात को रखते राजेंद्र जी को सुनना एक अनूठा अनुभव बन कर रह गया.  एक अहिन्दीभाषी राज्य में बड़े आत्मविश्वास के साथ हिंदी में बोलते हुए जब राजेन्द्रजी ने कहा की मुझे मलयालम बहुत प्य

बादलों के घेरे में

बादलों के घेरे में चेहरा तेरा दिखता है क्या बताऊँ और किसे गम भी जहाँ में बिकता है ख़ुशी-आशा आए-गए देखे मन में क्या अब टिकता है दूर तक पसरा अँधेरा मुझको तो अब दिखता है खुश रहो कहता सभी से दुनिया से ये ही रिश्ता है बिछुड़ना तेरा याद आये तो जख्म दिल का रिसता  है विरह की चक्की में देखो ह्रदय मेरा पिसता है प्रेम करके प्रेम ही पाए इंसां नही वो फ़रिश्ता है हमने तो देखा यारों प्रेम का गम से रिश्ता है. (कृष्ण सोबती की कहानी "बादलों के घेरे" को समर्पित)

मेरा कोई कारवां नही

मुझे जिन्दगी का मर्ज है जिसकी कोई दवा नही मैं जहां में तन्हा-तन्हा हूँ यहाँ कोई मेरा हमनवां नही मेरा दिल अभी भी है सीने में ये कोई दिल-ए-नातवां नही मैं अडिग हूँ अपनी जमीन पर मुझे हिला सके वो हवा नही लाखों हैं मेरे हमसफ़र पर मेरा कोई कारवां नही

बस दिल में तेरी वफ़ा रहे

जब तलक जिन्दा रहे हम जिन्दगी से खफा रहे मौत आये करीब तो बस दिल में तेरी वफ़ा रहे जिन्दगी कभी ठहरे नही ये ही मेरा फ़लसफ़ा रहे पलड़े बराबर रहे दोनों नाही नुकसां नाही नफा रहे दामन भले मेरा काला हो औरों के दामन सफा रहे मैं छोडूँ जब इस दुनिया को मुझपर ना कोई दफा रहे.

ग़जल-जिन्दगी से क्या गिला

अनमना-सा मन है, पीड़ा है अनकही तुमको क्या,करते रहो तुम अपनी बतकही भुला दिया था जिसको हमने बरसों पहले आज क्यूँ उसकी याद आँखों से आंसू बनके बही फिर से याद आई है अपनी इज़हार-ए-मोहब्बत और उसके होठों से निकली रुंधी-सी 'नहीं' उसको अपनी जिन्दगी से तो निकाल दिया मगर उसकी यादें दिल में घर करके रही जिन्दगी में जो मिला हंसकर के लिया ख़ुशी मिली  तो भी अच्छा,गम मिला तो भी सही.

मन की पीड़ा अनकही

मन को कितनी.... पीड़ा होती है जब तेरी आँखों में दिख जाता कोई मोती है. दूर मुझसे जो रहो खुश.. तो कोई बात नही तन्हा होते हुए भी गम का अहसास नही मांगती फिरती हो खुशियों की दुआ सबके लिए काश! लोगों के दिलों में आईने होते जब से तेरी आँख में आंसू देखा तब से मन मेरा बड़ा सूना है बाँट सकता नही तेरा गम में इसका दुःख मुझको और दूना है ख्वाहिशे मन की मेरी मन में रही बच गई एक तमन्ना..जो जीवन में रही कोई दिन आएगा ऐसा की मेरी याद आएगी अपने गम बांटने को, मुझको तू बुलाएगी. क्या पता, वो दिन कब आएगा? क्या पता, वो घडी आ पायेगी? क्या पता..कल को क्या-क्या होगा? क्या पता..उसको क्या पता होगा? कल की ना जानूँ , मैं इतना जानूँ  मौला जो भी करे अच्छा होगा. बात सुन मेरी मेरे हमनवा, ओ यार मेरे! भूल से भूलना भी मुमकिन ना, पहले प्यार मेरे ये जो मौसम है उदासी का, चला जायेगा कोई प्यारी-सी धुन.. भंवरा गुनगुनाएगा तब मुझे याद करो, ना करो, कोई बात नही अपने गम में मुझे बेगाना ना समझा करना मुझपे ज्यादा ना सही, इतना भरोसा करना एक आवाज जरा देके देख तो लेना मैं वहां हूँ तुम्हारे साथ में या की नह