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जुलाई, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ममता का पेड़

ममता के पेड़ की छाया तले मैंने जीवन गुजारा ग़मों से परे मैंने सीखा लुटाना प्रेम सबों पर मैंने सीखा लगाना स्नेहलेप ग़मों पर मन में मेरे तमन्ना यही है बसी- मैं भी ममता का पेड़ हो सकूँ एक दिन.

इश्क करके देख

इश्क करके देख रूह आजाद होगी इश्क करके देख रोशन ये कायनात होगी इश्क करके देख खुशनुमा हयात होगी इश्क करके देख, इश्क ही हर बात होगी.

प्रेम का सच-झूठ

(मन्नू भंडारी जी और उनकी कहानी 'यही सच है' को समर्पित) प्रेम में हम कह नही सकते यही सच है और वह है झूठ बस यही कह सकते की या तो सभी सच है या सभी है झूठ. प्रेम पाखी के परों में एक पर है सुख असीम और दूजा पर है उसका वेदना निस्सीम. प्रेम का है एक पहलु सहज, साम्य,निर्विकार, और उसका दूजा पहलू वासना-तृष्णा का ज्वार. प्रेम सागर की सतह पर मन लहर बन डोलता बैचैन होकर वहीँ गहराई में उसकी मुक्त आत्मा शांत है सब अहम् खोकर. प्रेम का जो सच है सच वो जिन्दगी का भी प्रेम के जो संशय संशय वे जिंदगी के भी. प्रेम में पाना नही कुछ प्रेम में खोना नही कुछ प्रेम में बस प्रेम का विस्तार ही होता है सबकुछ.

मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी

पता नही कब से मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी है हर मुश्किल में हर बेबस की ढाल महात्मा गाँधी है. अक्सर इस जुमले को सुनते- सुनते मन में आता है - गाँधी जी का मज़बूरी से ऐसा भी क्या नाता है? ऑफिस की दीवारों पर गाँधी की फोटो टंगी-टंगी बाबुओं का घूस मांगना देखा करती घडी- घडी चौराहों- मैदानों में बापू की प्रतिमा खड़ी- खड़ी नेताओं के झूठे वादे सुनती विवश हो घडी-घडी गाँधी का चरखा, गाँधी की खड़ी आज अतीत हुई, गाँधी के घर में ही देखो गोडसे की जीत हुई. गाँधी जी की हिन्दुस्तानी पड़ी आज भी कोने में, गाँधी के प्यारे गांवों में कमी न आयी रोने में. नोटों पर छप, छुपकर गाँधी सब कुछ देखा करते हैं हर कुकर्म का, अपराधों का मन में लेखा करते हैं. गाँधी भारत का बापू था, इंडिया में उसका काम नही, मज़बूरी के सिवा यहाँ होठों पर गाँधी नाम नही. इतना कुछ गुन-कह-सुन मैंने बात गांठ यह बंधी है- गाँधी होने की मज़बूरी का ही नाम महात्मा गाँधी है.